भटकते हुए युवा के निर्माण में तथाकथित प्रबुद्ध वर्ग का समाजिक योगदान

विचारों की खेती में तथाकथित मानसिक रूप से प्रबुद्ध वर्ग ने ही हमें खाँचे में बाँटकर अपना आर्थिक और राजनीतिक हित साधने की कोशिश की है और मानसिक रूप से कुंठित भविष्य के निर्माण में एक अहम भूमिका निभाई है।विचारों के मंथन में एक-दूसरे को नीचे दिखाते हो ,खाँचे में बाटते हो, और लोगों को ये दिखाने की कोशिश करते हो कि स्वतंत्र विचारों के दायरों का दारोमदार हमी से होकर निकलती है ।वेवजह किताबी बातें बताते हो लेकिन आपके व्यवहार में ये खीझ झलकता है जरा ठहरकर सोच लेना कि हम क्या सोचते हैं और क्या बोल देते हैं और क्या करते हैं ये सब खुद को नहीं दिखता है अपने ही विवेक पर आत्ममुग्ध होना मूर्खता से बढ़कर कुछ भी नहीं है। चलो जब हकीकत को जानोगे भटकते हुए युवा को मानोगे जिंदगी का मर्म है मानवता और स्वतंत्र विचारों के जाप से ,बोल से जाहिर करने से नहीं आपके व्यवहार में मानवता और स्वतंत्र विचारों से समाज का ताना-बाना दिखाई देना चाहिए। इतिहास हमेशा उस बौद्धिक दृष्टिकोण को अपनाता है जो विचारों से स्वतंत्र हो पर ऐसा सच में होता है क्या ?? हाँ होता है मेरे नजरिए से पर जो बौद्धिक रूप से सम्पन्न होते हुए भी विचारों में निजी फायदे के लिए कैद होते हैं वे लोग समाज को एक दायरों में समेटना चाहते हैं। वे अपना दायरा संख्याबल के आधार पर बढ़ाकर एक दायरे में ही खुदको समेट लेते हैं उन्हें ये सब उहापोह में नहीं भटकते हुए युवा की तरह तो बिलकुल नहीं वे ऐसा सचमुच जानबूझकर करते हैं। चलो निराश होने की जरूरत नहीं है अब एक मसीहे की तलाश करते हैं एक नजरिए की आस करते हैं जो विचारों के द्वंद में भटकते हुए युवाओं की टोली को एक नए समाजिक सरोकार की नींव डाले मानवता की घुटी पिलाए बौद्धिक संपदा बढ़ाए औऱ खाँचे में तो बिलकुल न बाँटे और घिसे-पीसे तर्कों को न बढ़ाये खुद को अघोषित बौद्धिक कुठारघातों को भी मानवता रूपी विचारों से एक सफल समाज बनाए।

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